हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना हमीद मलकी ने सफ़ीरान-ए-हिदायत" सम्मेलन के दौरान आयोजकों की सराहना की और हॉल की दीवारों पर लगे उलेमा के चित्रों को हौज़ा का "सामाजिक पूंजी" बताया। उन्होंने कहा: हम उन आलिमों के ऋणी हैं जिन्होंने तक़्वा, लोगों से लगाव और इख़्लास के साथ, कभी गुमनामी में रहकर भी इस विरासत को पैदा किया। हम उन लोगों की विरासत संभाल रहे हैं जिन्होंने ताग़ूत के दौर में जेलें सही, जिला-वतन हुए और शहीद हो गए ताकि इस्लाम ज़िंदा रहे।
उन्होंने शहीद मुत्तहरी और मरहूम याक़ूब नेजाद जैसे उलेमा का ज़िक्र किया शहीद मुतहरी की मशहूर तक़रीरें आज भी मुस्लिम समाज को प्रेरित करती हैं, और शहीद याक़ूब नेजाद ने उनके बेहतरीन इख़लास से मुतहरी के अफ़कार को इकट्ठा कर एक ऐसा किताबी ख़ज़ाना पेश किया, जिसे देखकर लगे कि ये काम पचास लोगों ने मिलकर किया हो।
मौलाना मलकी ने इमाम ख़ुमैनी (रह.) के बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने मस्जिद को दीनी पहचान का क़िला कहा था। उन्होंने कहा: आज कुछ मस्जिदें दफ़्तरों जैसी बन गई हैं, जबकि मस्जिदें लोगों के लिए होती हैं और वहाँ पैग़म्बर (स) की सुन्नत ज़िंदा होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, इमामे-जमाअत को केंद्र में होना चाहिए, न कि सरकारी मैनेजरों को यही वो एकजुटता है जिससे दुश्मन डरता है। जैसा कि इमाम ख़ुमैनी (रह.) ने फ़रमाया था कि अगर उलमा साथ बैठकर चाय भी पी लें, तो दुश्मन को झटका लगता है।
उन्होंने नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली (अ.) की वसीयत के कुछ हिस्सों की तिलावत करते हुए तलबा से कहा,तौहीदपरस्त बनो, और पैग़म्बर (स) की सुन्नत को कभी नज़रअंदाज़ न करो। पैग़म्बर (स) ने समाज को अपनी सादगी, आदर और हमेशा की मुस्कान से तहज़ीब दी आज का तलबा इस अमल को दोबारा ज़िंदा करे, सुस्त और बे-रूख़ न बने।
अंत में उन्होंने की "सफ़ीरान-ए-हिदायत" मदरसे के प्रयासों की सराहना की और कहा कि 300 से अधिक ग्रेजुएट्स इस वक़्त देश के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने आयतुल्लाह आराफी के समर्थन और तलबा में इज्तेहाद की भावना को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया।उन्होंने कहा,याद रखो जो तलबा अल्लाह के लिए इल्म हासिल करता है, वह कभी मोहताज नहीं रहेगा।
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